zindagi shayari in hindi
ज़िंदगी मेरी थी लेकिन अब तो
तेरे कहने में रहा करती है
एक मुश्त-ए-ख़ाक और वो भी हवा की ज़द में है
ज़िंदगी की बेबसी का इस्तिआरा देखना
हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
दो घड़ी की चाहत में लड़कियाँ नहीं खुलतीं
वो लम्हा भर की कहानी कि उम्र भर में कही
अभी तो ख़ुद से तक़ाज़े थे इख़्तिसार के भी
ज़िंदगी अब के मिरा नाम न शामिल करना
गर ये तय है कि यही खेल दोबारा होगा
ये जो मोहलत जिसे कहे हैं उम्र
देखो तो इंतिज़ार सा है कुछ
एक इसी उसूल पर गुजारी है जिंदगी मैंने,
जिसको अपना माना उसे कभी परखा नहीं।